आपके लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है? | Bible Adhayan

आपके लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है?


  जिस समस्या का प्रत्येक मसीही को सामना करना पड़ता है, वह यह है कि परमेश्वर की इच्छा किस प्रकार जानी जाए। इस पृथ्वी पर यीशु मसीह का जीवन, परमेश्वर की इच्छा के पूर्ण समानता का एक सिद्ध उदाहरण है।

   इब्रानियों 10:7, "तब मैंने कहा, देख में आ गया हूँ, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करु।" यीशु मसीह इस पृथ्वी पर परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए आए। 

   यीशु ने वास्तव में अपना वह कार्य पूरा किया जो पृथ्वी पर करने के लिए पिता द्वारा उन्हे सौंपा गया था। यूहन्ना 17:4, "जो काम मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा के है।"

   जैसे यीशु को इस पृथ्वी पर एक विशेष कार्य पूरा करने के लिए सौंपा गया था, वैसे ही प्रत्येक मसीही को भी एक विशेष कार्य सोपा गया है। यह मेरी और आपकी जिम्मेदारी है कि हम प्रभु से मालून करें कि हमारे जीवन में उसकी क्या योजना है।


1. प्रत्येक जीवन के लिए परमेश्वर की एक योजना है

  परमेश्वर के लोगों में से प्रत्येक के लिए एक दिव्य रूपरेखा निर्धारित है। उसकी यह योजना हमारे व्यक्तित्व, प्रतिभाओं, आवश्यकताओं, क्षमताओं और वातावरण के अनुकूल होती है। इफिसियों 2:10, "क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिए सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिए तैयार किया।"

  परमेश्वर ने प्रत्येक मसीही के लिए व्यक्तिगत रूप से विशेष कार्य और कर्तव्य निर्धारित किए हैं। इब्रानियों 12:1 "वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़े।" हममें से हर एक के लिए अलग अलग दोड़ निर्धारित है। पौलुस यह कह सका, "मैने अपनी दौड़ पूरी कर ली है।" उसने अपनी सेवकाई पूरी की और उसका कार्य पूरा हो गया था, 2 तीमुथियुस 4:7 । प्रेरितों के काम 22:14 "तब उसने कहा; हमारे बाप-दादों के परमेश्वर ने तुझे इसलिए ठहराया है, कि तू उसकी इच्छा को जाने।" परमेश्वर चाहता था कि पोलुस प्रभु को इच्छा को जाने।

  आपके लिए जो परमेश्वर की योजना है वह अत्यन्त व्यक्तिगत है। यह केवल आप ही के लिए है। भजन संहिता 32:8, "में तुझे बुद्धि दुंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उसमें तरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मति दिया करूंगा।" 

  परमेश्वर की योजना बहुत विस्तृत है। भजन संहिता 37:23, "मनुष्य की गति यहोवा (परमेश्वर) की ओर से दृढ़ होती है।" परमेश्वर हमशे जीवन भर के रास्ते को प्रकट नहीं करता परन्तु वह एक एक कदम पर रास्ता प्रकट करता है। परमेश्वर की योजना निरन्तर है। यशायाह 58:11, "और यहोवा (परमेश्वर) तुझे लगातार लिए चलेगा।"

  परमेश्वर की योजना निश्चित और विशिष्ट हैं। यशायाह 30:21," और जब कभी तुम दाहिनी वा बायी ओर मुड़ने लगो, तो तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा, मार्ग यही है इसी पर चलो।" परमेश्वर अपने आत्मा से वचन के द्वारा मार्गदर्शन करता है।

  परमेश्वर चाहता है कि हम उसकी योजना के विषय में पूछ-ताछ करें। भजन संहिता 143:8, "जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझको बता दे।"

  परमेश्वर चाहता है कि प्रतिदिन का विवरण जानने के लिए हम बहुत धिक प्रार्थना करें।

  परमेश्वर की इच्छा उस खास विश्वासी के लिए सदा ही भली स्वीकार्य और सिद्ध होती है। रोमियों 12:2, "जिससे तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।"


2. परमेश्वर की योजना प्रत्येक जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है

   यह एक शोकपूर्ण वास्तविकता है कि अपने स्वार्थ और हठीलेपन के कारण अपनी योजना को पूरा करने के प्रयास में, परमेश्वर की योजना से भटक जाना सम्भव है। यह एक दुखान्त भूल है और इससे बच कर रहना चाहिए।

हम अपने जीवन के लिए स्वयं योजना बनाने में सक्षम हैं।

यिर्मयाह 10:23, "हे यहोवा (परमेश्वर ), में जान गया हूँ, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके ढंग उसके आधीन नहीं है।" केवल परमेश्वर ही भविष्य को जानता है, और वही हमारे व्यवसाय या मार्ग को चुनने में सक्षम है।


3. परमेश्वर की योजना में सदा ही कुछ विशिष्टताएं सम्मिलित होती है

   पाप के लिए मर कर पवित्रता के भागी होना। 1 थिस्सलुनीकियों 4:3,"क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम पवित्र बनो।" परमेश्वर पवित्र है और उसकी यह इच्छा है कि हम उसके समान बनें। प्रार्थना और धन्यवाद करना सदा ही हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा है। 1 थिस्सलुनीकियों 5:17, 18, "निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो; हर बात में धन्यवाद करो; क्योंकि तुम्हारे लिए मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है।" भले काम करना सदा ही परमेश्वर की इच्छा है। 1 पतरस 2:15. "क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है कि तुम भले काम करने से निर्बुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों को बन्द कर दो।"


4. पथ-प्रदर्शन की शर्ते

  1. परमेश्वर पर भरोसा रखना है : भजन संहिता 37:3;
  2.  भजन संहिता 32:8, पथ-प्रदर्शन केवल विश्वासी के लिए है। जिसने उद्धार प्राप्त नहीं किया है उसके लिए परमेश्वर की एक ही योजना है-विश्वास कर और उद्धार पा।
  3. परमेश्वर को अपने सुख का मूल जानः भजन संहिता 37:4 ।
  4. उत्सुक रह, उसको इच्छा जानने को तत्पर रह और आज्ञा का पालन करा 
  5. अपने मार्ग की चिन्ता परमेश्वर पर छोड़: भजन संहिता 37:5 हमें उसमें पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।
  6. परमेश्वर के सामने चुपचाप रह और धीरज से उसका आसरा रख: भजन संहिता 37:7 परमेश्वर पथ प्रदर्शन करने की प्रतिज्ञा करता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह उसी दिन आप पर अपनी इच्छा प्रकट कर दे जिस दिन आप उससे विनती करते हैं।
  7. परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण कर दीजिए: हमें उसकी इच्छा के प्रति आज्ञाकारी रहने के लिये तैयार रहना चाहिए रोमियों 12:1, 2 ।
  8. सभी ज्ञात पापों और संसार के प्रति समर्पण कर दीजिये: रोमियों 12:2, "और इस संसार के सदृश न बनो जिससे तुम परमेश्वर की सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।" इसलिए संसार से अलग के बाद ही उसकी इच्छा प्रकाशित होती है ।
  9. आत्मिक बुद्धिः रोमियों 12:2, "परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से" आपका मन परमेश्वर, उसके आत्मा, उसके वचन के अनुकुल हो जाता है, ताकि उसकी धीमी वाणी को सुन सके। 


5.पथ-प्रदर्शन की विधियां

  इसके बाद यह प्रश्न उठता है, कि खोजी मनुष्य को परमेश्वर अपनी इच्छा किस प्रकार प्रकट करता है? सच्चाई यह है कि परमेश्वर सर्वाच्च सत्ता है और वह एक निर्धारित आदर्श के अनुसार कार्य नहीं करता क्योंकि वह प्रत्येक व्यक्ति को भित्न तरीके से मार्गदर्शन करता है कभी कभी परमेश्वर अपनी इच्छा अवसरों परिस्थितियों, माता-पिता की इच्छा मित्रों की सलाह, स्वयं अपनी योग्यताओं के मूल्यांकन, व्यक्तिगत झुकाव या प्रवृत्ति, उस दिन की आवश्यकताओं और विवेक के द्वारा प्रकट करता है, (ड्रमन्ड, स्टियर्ड द्वारा उद्धृत)।

  1. परमेश्वर बहुधा पवित्र शास्त्र के पदों द्वारा जो आपसे बहुत प्रबलता से बोलते हैं, आपका मार्गदर्शन करता है। सावधान:आँखें बन्द करके अनुमान से किसी पद को न खोलिए। परमेश्वर अनियमित रूप से कार्य नहीं करता। परमेश्वर के वचन से अपने को परिपूर्ण कर लीजिये, ताकि परमेश्वर पवित्र वचन के विभिन्न अंश आपके मस्तिष्क पर अकित कर दे। परमेश्वर की इच्छा कभी भी बाइबल के विपरीत नहीं होती. इसलिए परमेश्वर के वचन, बाइबल को जानिये।
  2.  भीतरी कायलियत परमेश्वर के आत्मा की देन है। रोमियों 8:16, "आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है," अर्थात् कार्य का निश्चित मार्ग अच्छा है या गलत है यह समझ ने मे हमे सहायता करता है। 

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